हिमालय पर्वत श्रृंखाओं के गोद में विशाल देवदारू वृक्षों के घने जंगलों के बीच में बसे है भगवान शिव। वैसे तो हिमालय में बहुत सारे शिव मंदिर बने है लेकिन जो जागेश्वर में शिव है वो बहुत ही प्राचीन है। वेदों पुरणों में जो कि अटल सत्य है उनमें श्री जागेश्वर शिव का नाम आता है। ये एकमात्र स्थान है जहां शिव अपने जागृत अवस्था में रहते है, जो मांगो वो मिल जाता है। पूरे सृष्टि में एक मात्र स्थान श्री जागेश्वर महादेव इनका इतिहास आप केदार खण्ड, शिव पुराण आदि में देख सकते है। याेगी, जोगी, नागाबाबा,साधु व संत की इस पावन भूमि में सदा जलने वाला अखाड़ा और वही पर समसान जहा पर श्री भगवान लकुलीस और शिव ने एक साथ तपस्या कि। इसलिए जहा भी शिव भूमी होती है वहां पे समशान अवश्य होता है। इसीलिए भगवान शिव को समशान निवासि भी कहा जाता है। यही पे अत्यंत सुंदर और अद्भुत भगवान लकुलीस जी के भी दर्शन होते है। 

Festival of Jageshwar dham

Shiv स्थान होने से यहा तो रोज़ ही मेले जैसा महोल होता है लेकिन को पवित्र त्योहार है जैसे Bhagwan Shiv ko bahut acha lagta hai sawan ka महीना। पूरे महीने भर बारिश से शिव का रुद्राभिषेक होता  रहता है।  जो कि १५ जुलाई से १५ अगस्त तक रहता है। 
महाशिरात्रि भी बहुत ही सुंदर तरह से मनाई जाती है। रात के १२ बजे शिवमहा पूजा होती है। जिसमें भगवान शिव के १००८ नामो से शिव को पूजा जाता है । भक्त गण रात भर भजन कीर्तन से शिव के चरणो में लीन रहते है। 
जागेश्वर में हर महीने के प्रतिपदा को यानी हिंदी कैलेंडर के अनुसार पहली तारिक को दास जो कि लोकल folk ड्रम बजाके नए महीने कि सुरुआत करते है। और पूरे मंदिर की प्रदक्षिणा करते है। तो उस तरह से हर दिन हर महीना यहां त्योहार ही मनाया जाता है। 

Jageshwar Temple complex

पुरे जागेश्वर गांव में देखा जाए तो यहा २०० से ज्यादा मंदिर है। लेकिन केवल जागेश्वर मंदिर समूह में १२४ मंदिरों का ग्रुप है। जिसमें ५ मुख्य मंदिर Jagnath नागेश, हनुमानजी, पुस्टि माता, महामृत्युंज, केदार, और मंदिर के प्रवेश द्वार पे बटुक भैरव तथा बाहर जाके सबसे अलग थलग भगवान कुबेर की का मंदिर है। और भी मंदिर जैसे बालेश्वर , नीलकंठ, सुर्य मंदिर, नवग्रह मंदिर, वरुण देव, लकूलीस, अनपुरना देवी, नवदुर्गा, यज्ञ कुंड, आदि मंदिर है। पवित्र स्थान ब्रह्मकुड सरयु नदी जतागंगा नदी के संगम पे बना हुआ है। तपस्या में लीन  योगी प्रातःकाल स्नान करके भगवान आदिशंकर को जलाभिषेक के लिए जल भर के  ले जाते है। कई ऋषि तो जलनिमग्ना होकर शिव का रुद्री पाठ भी करते है। इनमें से एक है स्वामी प्रकाशा नंद महाराज । स्वामी जी हर रोज प्रातः काल ब्रह्म कुंड में स्नान करके और कुंड में बैठ के भगवान शिव का ध्यान रुद्री पाठ करते है। 

जागनाथ मंदिर।

जागेश्वर ज्योतिर्लिंग महादेव जो की स्वयंभू देव है। आदिगुरु शंकराचार्य जी ने इन्हीं मंदिरों का पूजा पाठ सुचारू करवाया। अलग अलग स्थानों से पंडितो को लाकर यहां पूजा पाठ सुरु करवायी। दिव्य ज्योतिलिंग  अस्टम ज्योर्तिंलिंग नागेशम नाम से प्रशिद है। दारुका वने भगवान शिव देवदार के विशाल पेड़ों के बीच में बसे है। जहा पर जटागंगा नामक नदी बहती है। ऋषी जन, योगी जन अपनी साधना के लिए यहां तपस्या में मग्न रहते है। एक आलौकिक दिव्य प्रकाश के लिए सालों साल सर्दी हो चाहे गर्मी यह साधाना में जमे रहते है। उनका जोगी भैश में आना ज़रूरी नहीं। योगी किसी भी भैस में आ सकते है। यहां सुबह सूर्योदय से पहले प्रातः पूजा, दोपहर में भोग पूजा, और सायं को बहुत ही सुन्दर आरती देख मन को अति शांति मिल जाती है। इस स्थान पे २ पल बैठ के ध्यान लगाना मतलब वर्षों तप किया ऐसा फल मिलता है। 

कुबेर देवता।

जागेश्वर मंदिर समूह से अलग थलग ऐकांत में बैठे भगवान कुबेर शिव लिंग रूपी दर्शनों से मानो जगत के सारे एश्वर्य मिल जाते हो। इन्हे खजाने का देवता भी बोला जाता है। यहां पे स्वच्छ रूप से भगवान को खीर का भोग लगाया जाता है। प्रत्येक मनुष्य ya phir koi yogi yaha pe तपस्या करके अपने पुण्य लोको तक को स्वच्छ कर देते है। इस स्थान पे मांगने से नहीं बल्कि बिना मांगे सब कुछ मिल जाता है।एक ऐसी अनुभूति का आनंद मिलता है जिसे जो सम्पूर्ण जगत में ना मिलता हो। कुबेर देवता भगवान् शिव की सेवा में हमेशा और सारे देवी देवता भी शिव के महिमा के गुणगान और सेवा के लिए हमेशा जुटे रहते है। अगर किसी मनुष्य का भाव गलत हो तो उसे कुबेर देवता तुरंत दण्ड भी दे देते है। 


श्री महामृत्युंजय महादेव।

Mahamrityunjaya Mahadev Mandir

आदियोगी जगत गुरु शंकराचार्य जी ने अपनी दूर दृष्टि से कलयुग के घोर विनाश को देखकर अपने तपो बल से मृतुन्जय भगवान माने मृत्यु पर विजय पाना यहां पे अदभुत शक्ति पूंज को मंत्रो द्वारा किल्लीत यानी शक्ति को कम कर दिया और केवल भाव प्रधान मनुष्य को ही उस आलौकिक शक्ति का एहसास करने वाला बना दिया। विशाल शिवलिंग के सामने बैठने मात्र से ही हमें उस शक्ति का या फिर तुरंत समाधि में लीन हो जाते है। यहां पे लोगो द्वारा तरह तरह के पूजा पाठ और संतान प्राप्ति ke liye पुरे रात भर हाथो में दीया लेके आराधना करते है। निसंदेह अगले साल पुत्र को साथ लेके अवश्य आते है। भगवान के आशीर्वाद के लिए। 
पूरे विश्व में केवल एक ही महामृत्युंजय मंदिर है जो कि जागेश्वर में स्वयंभू है। यहां भी तीनी समय प्रातः पूजा , भोग पूजा तथा सायं कालीन आरती अति मनोरमी होती है। शंक, घंटो, मजिरो और डमरू की आवाज से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है। जो आपके हृदय को उस ओमकार बिंदु स्वरूप ॐॐ के साथ मिला देता है। हमारा शरीर अपने आप धरती से ऊपर उठ जाता है। लगता है कि हम शरीर नहीं केवल एक ऊर्जा है को हवा के तरह तेर रही है। 
जै सच्चिदानन्दा 

 

Mahamrityunjaya Mahadev Mandir Puja

दंडेश्वर महादेव।

दंदेश्वर जिसका साब्दीक अर्थ है दण्ड ईश्वर। यानी ईश्वर को दण्ड दिया गया। पौराणिक ग्रंथों, वेदों, केदार खण्ड में ये लिखा है कि लिंग कि उत्पत्ति का एक मात्र मूल स्थान यही है। जहा पे इश्वर को दण्ड मिला सप्त ऋषियो द्वारा और तभी से सम्पूर्ण विश्व में लिंग पूजन शुरू किया गया। इस स्थान पे जलती हुई धूनी का एक अलग ही महत्व है। हमे वातावरण के ऊर्जा का अनुभव होता है। यहां भी शमशान धाट है। क्यूंकि जहां पे शिव है वहीं शमशान भी है। इसहिलिए इन्हे अघोरी भी कहा जाता है। अपनी साधना को चरम सीमा तक लाने का एकमात्र स्थान डंदेश्वर महादेव। यहां का विशालकाय शिवलिंग धरती से ही निकला है। जो कि एक चटान नुमा आकर का दिखाई पड़ता है। इसीलिए इसे मूल स्थान भी माना जाता है। 

Dandeshwar Mahadev Mandir

झांकर शैम देवता।

झांकर मतलब जटाओं से है, और सैम मतलब भगवान शिव रुद्र, भगवान के रूद्र अवतार में जब उनकी  विशाल जटाओं को देख कर सारी सृष्टि उनमें समा जाए। यह स्थान अति आनन्द युक्त है। जागेश्वर के दक्षिण भाग में बने इस महान अति पवित्र स्थान में दूर दूर से लोग धूनी में रमने चले आते है। इनको क्षेत्रपाल भी कहा जाता है पूरे क्षेत्र की रक्षा  करते है भगवान झांकर सैम। शिव यह पे आदि काल से ही रमे हुए है जब आदि माता शक्ति ने अपने पिता के यज्ञ कुंड में आहुति दे दी थी, तब भगवान शिव शांति कि तलाश और समाधि में लीन होने के लिए भगवान रुद्र ने इस स्थान को ही पवित्र स्थान चुना। 


श्री वृद जागेश्वर।

श्री जागेश्वर से उत्तर की दिशा में पर्वत चोटी पे बना हुआ ये भव्य मंदिर श्री बृद जागेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। बहुत साधु संत इसी स्थान को साधना के लिए परम स्थान मानते है। बिल्कुल ऐकांत और हिमालय के दर्शनों से उनकी तपस्या सफल होती है। यहां भगवान शिव श्री भगवान विष्णु के रूप में विराजमान है। शिवलिंग रूपी भगवान विष्णु को इसीलिए यहां पे  मालपूए का भोग लगाया जाता है। इनके साथ यहां पे हनुमान जी, देवी शक्ति, बटुक भैरव,कुबेर देवता। आदि देव भी है। युगों से पूरे गांव वाले बारी बारी से पूजा पाठ करते है। यहां शिवरात्रि के पवित्र दिन का अति विशेष महत्व है। 

पुष्टि देवी माता। 

जागेश्वर मंदिर समूह में महामृत्युंजय मंदिर के ठीक पीछे से है माता पुष्टि देवी। माता को यह महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है क्योंकि माता जी एक राक्षस जिसका रूप एक भैंसे जैसा है उसका वध करते दिखाई दे रहा है। दया 

Vridh Jageshwar

रूपी मा सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाली पुष्टि देवी अपने साक्षात रूप व शक्ति पीठ है। यहां के पुजारी भी केवल कुछ ही लोग होते है क्योंकि माता की पूजा बहुत ही गुड तरह से होती है। हर कोई इसे नहीं कर सकता। माता का भोग भी अलग से बनता है। जो कि पंडित बनाते है।देवी मा के  साथ विराजे है सिद्धिविनायक गणेश जी और गजलक्ष्मी जी  जो कि उत्तर भारत में बहुत कम मिलते है। 

ऐरावत गुफा।

जागेश्वर मंदिर से लगभग १किलोमीटर की दूरी पर बनी है अति सुंदर प्राकृतिक दृश्य आश्चर्य कर देने वाला एक बहुत बड़े चट्टान में भगवान इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी की छवि। इसीलिए इसे ऐरावत गुफा कहते है। और साथ में बहती निर्मल गंगा  वातावरण को शुद्ध तो करती ही है लेकिन मन को भी एक दिशा में बहने को मजबूत कर देती है।पवित्र स्थान हो, शुद्ध गंगा का जल हो तो ॠषी मुनि ना हो ये हो  नहीं सकता। उनके लिए तो ये स्थान अत्यंत ही शुखदायक होता है। परिवार से दूर एकांत में केवल में और में मेरी साधना एक आलौकिक प्रकाश बस और कुछ नहीं।

Airavat Gufa

Archaeological Museum 

Jageshwar dham ke पौराणिक मंदिरों के पौराणिक मूर्तियों को और शीला लेख को सभाल के रखा है।उसके लिए एक museum hai jaha pe ati sundar sundar devi devta, आदि शंकर शिव, पार्वती, गणेश, नवग्रह, द्वारपाल,नंदी, सृंगी, कार्तिकेय, नृत्य करते भगवान शिव, इसी तरह से बहुत ही सुन्दर आकर्षक मूर्तियां विद्यमान है। 

विनायक क्षेत्र।

पूरा जागेश्वर चारो ओर से सुरक्षित है। क्योंकि जब मंदिरों का निर्माण चल रहा था तो ऋषी मुनियों ने पूरे क्षेत्र को चारू दिशाओं से एक रक्षा कवच कि तरक सुरक्षित कर दिया। जिसमें उत्तर दिशा में श्री वृदजगेश्वर, दक्षिण दिशा में झांकर सैम, पूरब में कोटेश्वर यानी कोटलिंग और पश्चिम में भगवान डंडेश्वर महादेव विराजमान है। इस पवित्र स्थान को यागेश्वर भी कहा जाता है क्योंकि यहां सप्त ऋषियों द्वारा तप तथा यज्ञ आदि किए गए थे यह जगह एक शोध के तरह भी इस्तेमाल की गई । यहां पे सप्त ऋषि अंतरिक्ष मै तारों, चन्द्रमा, सूर्य,खगोल आदि विषयो पे शोध किया करते थे। 


Travel tips.
Winter is the best time to travel if cold is okay because some days tempreture gets below zero ,but this is the only time if someone want to see the inner self Feel the Shiva in self. Otherwise all the months are great specially the month of sawana is the best also. Van serai the best place to stay.