वन सराय और प्रकृति
अपने घर से दूर एक और घर वन सराय। बर्फ से आच्छादित् हिमालय के महान व अदभुत आकर्षक पर्वत शृंखलाओ के नज़दीक एक छोटा सा गाँव जागेश्वर धाम, जो की प्राचीन देवदारु के घने जंगलों के बीच मैं बसा हुआ है। संस्कृत या वैदौ मैं इन्हें दारूक वन भी कहा जाता है। इसलिए भगवान शिव के १२ ज्योतिर्लिंगो मैं जागेश्वर धाम को अष्टम ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
नागेशम दारुकावने
पेर्यटकों के रहने के लिए इस छोटे से गाँव मैं देवदारू वृक्षों के बीच मैं बना है वन सराय लॉज। जिस तरह वन सराय मैं रहने का आनंद आता है उसी प्रकार यहाँ का भोजन शरीर के साथ साथ मन को भी पवित्र कर देता है। स्वयंभू नामक वन सराय मैं भोजनालय है जहाँ और अत्यंत ही शुद्ध व बिना प्याज़ और लहसुन के ख़ाना तैयार किया जाता है। जिससे हम हमारे शरीर को इस पवित्र जगह के सूक्ष्मता का अहसास दिलाते है। और शरीर को और ज़्यादा ऊर्जावान बनाने के लिए क्रियाकलाप किए जाते है। वन सराय के सामने ही लंबे लंबे देवदारू के वृक्षों को देखकर और उनके नीचे बहती दूद गंगा जो की दंडेश्वर मंदिर के पास से आती है उसकी कल कल की आवाज़ से वन सराय मैं रहना और वहाँ बेठकर सात्विक भोजन का आनंद या फिर चाय का आनंद लेना बहुत सुखदायी होता है। स्वयंभू भोजनालय ना केवल आपको यहाँ की सूक्ष्म ऊर्ज़ा से जोड़ती है, बल्कि आपको यहाँ के गाँव घरों मैं जाके उनसें परिचय भी करवाती है। यह वह आनंद होता है जब आप एक दूसरे के दुःख व सुख़ साथ मैं समझते है। उनके जीने के तरीके व संस्कृति और तो और उनके त्यौहारों के बारे मैं आप जानते है। और हम यह जान जाते है कि प्रकृति मैं ये सब जो संतुलन हो रहा है वह इन्ही सूक्ष्म ऊर्ज़ाओ की वजह से ही है। जिनकी झलक हमे सूदूर गाँवों मैं ही देखने को मिलती है। ऋतुओ के बदलने मैं त्यौहार मनाये जाते है। मधुर संगीत ढोल, हुड़का, बीनबाज़ा, तुतूरी, नगाड़ा, चोलिया, दमुआ आदि यन्त्रों के साथ प्रकृति को भी नाचते है।
शरीर को इस पवित्र जगह की सूक्ष्मता और ऊर्जावान बनाने के लिए कर्म योगि कुछ ऐसे जगहों का चयन करते हैं। उन्हीं मैंसे एक है श्री जागेश्वर धाम, जागेश्वर मैं तंत्र विद्या, योग विद्या व ज्योतिष विद्या को प्रधान माना गया है। महामृतुंजय का एक मात्र मन्दिर व सप्तऋषियों के द्वारा किए गए यज्ञों के कारण ही अशीम ऊर्जा का अनुभव होता है इसीलिये जगह का नाम हुआ जागृत अवस्था मैं ईश्वर जागेश्वर। पुराणों मैं इस जगह को यागीश्वर कहते है।
तो आइए सब मिलकर पौराणिक तरह से बने हुए वन सराय मैं जाके सात्विक भोजन का आनंद ले और हम हमारे जीवन से अटूट रिश्ता रखने वाली प्रकृति को बचाये।
कुमाऊनी वाड्य यंत्र
उत्तराखण्ड की कुमाऊँ क्षेत्र कि बात करे तो सबसे पहले आती है कुमाऊँ चोलिया नृत्य।
चोलिया नृत्य जिसमें १० से १२ अलग अलग वाद्य यंत्र होते है। जिनमें से प्रमुख हैं, ढोल, नगाड़ा, दमुआ, मसक बीन, मंजीरा और दो कलाकार जो की हाथो मैं तलवार और खड़ग लेकर बहुत मनोहर नृत्य करते हैं। शादी, नामकरण या फिर कोई भी त्योहार हो ये लोग आते है और पूरे गाँव को मन्त्रमुग्ध कर देते है। जागेश्वर मैं ये पौराणिक तरह से चोलिया ढोल बाजा का चलन है संस्कृत कैलेंडर के हिसाब से इन भी नया महीने शूरू होता है तो ये लोग पारंपरिक पहनावे के साथ पूरे गाँव मैं हर घर जाते है और नये दिन नये महीने का उदघोष करके आते है। बदले मैं इनकों लोग पैसें या फिर अनाज दिया करते है। यह परम्परा राजाओ के समय से ही चलन मैं है। ढोल दमुआ बनाने के लिए जब कोई भैस गाँवों मैं मर जाती है तो उसकी छाल का इस तरह से इस्तेमाल किया जाता है। तो आइए चलते है जागेश्वर के इस पौराणिक चोलिया नृत्य देखने।
नाथू राम जी की कहानी
तो आज मैं आपको जागेश्वर के एक बुजुर्ग़ श्री नाथू राम जी के बारे मैं बताऊँगा। लगभग सारे गाँवों मौन एक ना एक ऐसे आदमी मिल ही जाते है जो पुरानी चीजो को अभी भी बनाते है। और दैनिकउपयोग मैं लाया करते है, इसलिए पूरा गाँव उन्हे कलाकार के नाम से सुशोभित् करता है। और सब लोगो के प्रिय भी होते है। तो नाथु राम जी किस तरह से भाँग के पौधें से रस्सी और तरह तरह की टोकरी बनाते है उसका जीता जगत सबूत पूरा गाँव होता है। वो घर घर जाके वहाँ से भाँग के पैड इकठ्ठा करते है और अपनी पीठ मैं लेकर सबसे पहले उससे लगे बीज़ निकाल लेते है जॉकी बहुत स्वास्थ के लिये लाभप्रद् होता है। फिर उनको २० दिन के लिए किसी तालाब नुमा पानी मैं डाल देते है और ऊपर से पप्थर से दाबा देते है। कुछ दिनों के बाद उनसे वो रेशें निकाल के बहुत सुंदर व मजबूत रस्सियो का निर्माण करते है।
सूदूर गाँवों के कई ऐसे नाथू राम जी लोग बाग जो की प्रकृत्ति की सूक्ष्म धरोहर को बनाये हुए है। और प्रकृत्ति को बीना हानी पहुँचाए सारे क्रियाकलाप करते है। बस बात इतनी सी है की क्या अब कोई और नाथू राम जी कि तरह उन कार्यों को करने के लिए तैयार होगा, अगर हूआ तो क्या प्रकृति के संतुलन का ध्यान भी देगा।
शिव साधना Month of Sawan
लिंग पुराण मैं देखा जाये तो सावन महीने का अत्यंत ही महत्वपूर्ण वर्णन लिखा हुआ हैं। जिसमें भगवान शिव ही सम्पूर्ण सृष्टि का पालन करते है क्योंकि उस समय भगवान विष्णु योग साधना मैं विलीन हो जाते है और कथाओं व पूरणों मैं भी यही लिखा है कि शिव का संपूर्ण सृष्टि को बचाने के लिए विष को अपने कण्ठ मैं धारण किया और स्वयं बन गये विष धारी नीलकण्ठ।
पूरे महीने अंत हीन अनंत, निर आकारी, ब्रह्म स्वरूप ऊर्ज़ा की ओर अग्रसर होकर अपने इस शरीर को जो की जीव आत्मा को लिए है उसे उसकी पहचान व योग के माध्यम से साधे।
योगियों के द्वारा बनाये गये कई द्वार है जो योग साधना करने व उन निराकारी ऊर्ज़ाओ से जोड़ने के लिए। उन्हीं ऊर्जावान जगहों मैंसे एक जगह है श्री जागेश्वर धाम। वन सराय मैं इन्ही ऊर्ज़ाओ का आभास कराने के लिए कुछ अभ्यास कराये जाते हैं जिनको हम शरीर साधना कहते हैं। देवदार के इन घने जंगलों मैं आते ही शरीर की साधना शुरू हो जाती है क्यूकि यहाँ प्रकृति शरीर साधना के लिए बहुत अनुकूल है ना की शरीर के आराम के लिए।
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