एक प्यार का सीधे दिल से निकला हुआ अटूट रिश्ता, जन्मों तक ना टूटने वाला बंधन हमारी ईजा. तो आइए आज हम आपको ले चलते हैं आत्मा से सरल, शुद्ध, दिलों को दिलों से मिलाने वाली और हमेशा शांत प्रिय, प्रसन्न चित्त रहने वाली, करुणा सागर दयावान हमारी ईजा की कहानी। नमस्कार जी मेरा नाम भुवन है और मैं आपको आज यह एक मनमोहक और सत्य कहानी बताने जा रहा हूं।
हमारी ईजा जिसका दिन सूरज की पहली किरण से पहले ही अनगिनत कामों से शुरू हो जाता है। कई ऐसे अनगिनत काम जिनकी गिनती नहीं होती है। अपना परिवार बच्चे उनके खाने-पीने का इंतजाम, उनके साथ साथ पूरे परिवार का देखरेख और सबसे महत्वपूर्ण परिवार में ही पाले हुए जानवर के बच्चे जैसे गाय, भैंस, बकरी इन सब का ध्यान रखना उनके लिए उनके बच्चों से भी बढ़कर हो जाता है। क्योंकि जानवर बोल नहीं सकते तो उनका डायरेक्ट कनेक्शन उनके जो पालन पोषण करने वाले हैं उनके साथ हो जाता है। इन महिलाओं की अगर दिनचर्या देखी जाए तो यह कोई एक बहुत बड़े अनुष्ठान से कम नहीं होता है। और इस अनुष्ठान में हर तरह के क्रियाकलाप और शारीरिक क्रियाकलाप बहुत ज्यादा होता है.
इजाऊ द्वारा किया गया कर्म प्रधान यज्ञ जोकि प्रतिदिन सुबह, दिन और शाम को रोज किया जाता है। यह यज्ञ सबसे प्रधान और शुद्ध Mana जाता है क्योंकि इसमें पंचतत्व का शामिल होना अपने आप में एक महायज्ञ और अनुष्ठान का संकल्प करता है। चूल्हा जिसमें प्रतिदिन अग्नि का आह्वान होता है, और उस चूल्हे में लगाई हुई मिट्टी और मिट्टी के साथ लगा हुआ पानी पृथ्वी और जल तत्व की पूर्ति करता है, तथा जब हम लकड़ियां लगाकर के आग जलाने के लिए अपने मुंह से वायु का प्रयोग करते हैं तो वह वायु तत्व की पूर्ति करता है, और आकाश तत्व तो उसमें रहता ही है तो इस तरह से यह चूल्हा जिसमें खाना बनाने के उपरांत जो प्रसाद स्वरूप खाना पूरे परिवार को मिलता है उस खाने में एक असीमानंद और मिठास और सबसे अधिक इजा का प्यार स्वाद आता है और दिल और दिमाग में एक अनन्य प्रेम का उद्घोष करता है। जंगल से अलग-अलग तरह की इकट्ठा की गई लकड़ियों से अलग अलग तरह के औषधीय निकलती है। जो पूरे घर के वातावरण को शुद्ध कर देती है। इस औषधि से जो की लकड़ी जलने से निकलती है कई तरह की आंतरिक और बाह्य शारीरिक समस्याओं का समाधान भी हो जाता है।
उसी तरह चूल्हे में जब हम लाल मिट्टी और उसके साथ गाय का गोबर मिला करके उसका लेप करते हैं तो वह कीटनाशक की तरह सारी बीमारियों को खत्म कर देता है। जिससे हमारा भोजनालय रसोईघर बहुत शुद्ध और साफ हो जाता है। इन महिलाओं के लिए चूल्हे में खाना बनाना प्रतिदिन भगवान को भोग लगाने के बराबर होता है।
यह यज्ञ कोई मंत्र उच्चारण या फिर वेद मंत्रों के पाठ, योग और ध्यान से नहीं किया जाता है।
यह यज्ञ भाव प्रधान होता है। इसलिए संपूर्ण भाव और असीम प्यार से इस यज्ञ का कर्मों को सिद्ध करने के लिए किया जाता है। क्योंकि इस यज्ञ में माताओं का संपूर्ण भाव केवल और केवल उस भोजन को भगवान के चरणों में अर्पित करने का होता है तो वह ज्यादा चिंता नहीं करती कि भोजन कैसा बन रहा है वह अपने आप ही बहुत मिठास वाला खाना बन जाता है।
खेतों में दिनभर तपती गर्मी में भी काम करना बिना किसी लालच के साथ उनका यह जीवन बहुत संघर्ष मई होता है। महिलाएं पहाड़ों में बहुत ही कठिन परिश्रम करती हैं। सुबह जल्दी उठकर के दो रोटी नमक के साथ हाथ में लेकर के जंगल को लकड़ी काटने के लिए चली जाती है और मधुर सुंदर पहाड़ी गान गुनगुनाते हुए सारे कामों को करते रहते हैं। महिलाओं के यह प्रतिदिन के अनगिनत काम जिनकी लिस्ट बना पाना थोड़ा मुश्किल का काम है। महिलाओं का इतना कठिन परिश्रम करने के बाद भी ह्रदय करुणा से हमेशा ही भरा रहता है और हमेशा प्रसन्न चित्त रहते हैं | बस इंतजार रहता है एक मीठी प्याली चाय की जिस से दोगुने ऊर्जा के साथ काम करने के लिए|
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